7,844 करोड़ रुपये के अतिरिक्त मुआवजे की मांग थी
भोपाल में हुए गैस हादसे के बाद यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर का मुआवजा दिया था, लेकिन पीड़ितों ने अधिक मुआवजे की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। गौरतलब है कि केंद्र ने 1984 आपदा के पीड़ितों के लिए कंपनी से 7,844 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा मांगा था और केंद्र ने मुआवजा बढ़ाने के लिए दिसंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दायर की थी।
कोर्ट ने की याचिका खारिज
सरकार चाहती थी कि यूनियन कार्बाइड यह पैसा गैस त्रासदी के पीड़ितों को दे, जबकि यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने अदालत से कहा था कि वह भोपाल गैस पीड़ितों को 1989 के समझौते के अलावा और पैसे नहीं देगी। 12 जनवरी को सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था और मंगलवार को अदालत ने याचिका खारिज कर दी।
वर्ष 1984 में जब भोपाल और उसके आसपास के काजी कैंप और जेपी नगर में लोग रात में सो रहे थे, तब आरिफ नगर में अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के 610 नंबर वाले गैस टैंक से खतरनाक गैस रिसाव हुआ और हजारों लोगों की जान चली गई। इस गैस का असर कई सालों से लोग झेल रहे हैं।
40 टन गैस लीक हुई थी
यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ। गैस रिसाव का कारण टैंक संख्या 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी में मिलना था। इससे एक रासायनिक प्रतिक्रिया हुई और जैसे ही दबाव बढ़ा, टैंक खुल गया और गैस बाहर आ गई। गैस रिसाव की घटना रात करीब 10 बजे हुई और सुबह तक शहर में बड़ी संख्या शव देखे गए।
सरकारी आंकड़े क्या कहते हैं?
यूनियन कार्बाइड सिस्टम द्वारा छोड़ी गई जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट से मरने वालों की संख्या 4,000 से कम है, लेकिन दावा किया जाता है कि इस घटना में 16,000 से अधिक लोग मारे गए थे। मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि गैस रिसाव की घटना में कुल 5,74,376 लोग प्रभावित हुए और 3,787 लोगों की जान चली गई। मरने वालों की संख्या शुरू में 2259 बताई गई थी और बाद में इसे अपडेट किया गया था। 2006 में सरकार द्वारा जारी एक हलफनामे में कहा गया था कि गैस रिसाव कांड से 558,125 लोग प्रभावित हुए थे, जिसमें 3,900 गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे। ये लोग भी दिव्यांगता के शिकार हुए।