चंद्रयान-3 आगामी 23 अगस्त को चंद्रमा पर उतरेगा। अगर भारत ऐसा करने में सफल हो गया तो वह ऐसा करनेवाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। अब तक केवल अमेरिका, रूस और चीन ही चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतर सके हैं। चांद पर उतरना आसान नहीं है। इसके लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, आइए जानते हैं वह कौन सी चुनौतियां है?
भारत का चंद्र मिशन चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए पूरी तरह तैयार है। चंद्रयान-3 भारत की चांद पर पहुंचने की महत्वाकांक्षा की कहानी है। भारत निर्मित चंद्रयान-3 कुछ दिनों बाद लैंडर मॉड्यूल और रोवर सहित चंद्र कक्षा में उतरेगा। यह भारत की वैज्ञानिक गाथा में कीर्तिमान स्थापित करेगा। चंद्रमा पर चंद्रयान-3 मिशन के तीन मुख्य कार्य हैं। चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित सॉफ्ट लैंडिंग, चंद्रमा पर रोवर की लैंडिंग और चंद्रमा की सतह का अन्वेषण।
खास बात यह है कि चंद्रयान-3 ने चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर का इस्तेमाल करके ही चंद्रमा तक का रास्ता तय किया। एक बार उतरने के बाद, यह चंद्रमा की सतह के ऊपर और नीचे जांच करेगा, जो लाखों वर्षों से अंतरिक्ष के अंधेरे में डूबा हुआ है। इसके साथ ही यह चंद्रमा के वातावरण की भी जांच करेगा। अमेरिका, रूस, चीन ही ऐसे देश हैं जो अब तक चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतर चुके हैं। अब भारत की बारी है। चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने के बाद यह न केवल वैज्ञानिक रूप से बल्कि आर्थिक रूप से भी बड़ी सफलता होगी। चंद्रमा की अर्थव्यवस्था पर भी भारत का असर दिखेगा।
चंद्र अर्थव्यवस्था क्या है?
चंद्रमा पर जाने की दौड़ में भारत उन चंद देशों में शामिल होगा जो न सिर्फ शोध के लिए पृथ्वी के इस उपग्रह पर जा सकेगा, बल्कि अगले चरण के लिए रास्ता भी साफ कर सकेगा। माना जा रहा है कि चांद पर लोगों को बसाने की भी योजना है। भविष्य में युद्ध, अनुसंधान और यहां तक कि छुट्टियों के लिए चंद्रमा पर अड्डे बनाए जा सकते हैं।
स्पेसएक्स जैसी कई कंपनियां चंद्रमा पर परिवहन को एक बड़ा व्यवसाय मान रही है। चंद्रयान के जरिए भारत बड़े कारोबार में अपना हिस्सा पाने के लिए पूरी तरह तैयार है। प्राइस वॉटरहाउस कूपर के अनुमान के मुताबिक, चंद्र परिवहन कारोबार 2040 तक 42 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। चांद से मिलने वाला डेटा भी काफी अहम साबित होने वाला है। हर देश चांद पर सफलतापूर्वक नहीं उतर सकता। इसलिए वहां से प्राप्त जानकारी भारत से करोड़ों डॉलर में खरीदी जाएगी, ताकि चंद्रमा पर बिना यान भेजे शोध किया जा सके।
चंद्रमा पर बसने की तैयारी की जा रही
इसके अलावा एक अनुमान के मुताबिक, 2030 तक चंद्रमा पर 40 और 2040 तक 1000 अंतरिक्ष यात्री होंगे। उनके जाने से पहले चंद्रमा की सतह के बारे में जानकारी जुटाना बहुत जरूरी है, ताकि वहां रहने के लिए बेस तैयार किया जा सके। चंद्रयान-3 इसके लिए भी बेहद अहम जानकारियां जुटाएगा। यह जानकारी लाखों डॉलर कमाने में भी काम आएगी। अंतरिक्ष यात्रियों के लिए उपकरण ले जाने के लिए एक बेस भी बनाया जाएगा, जिसके लिए चंद्रयान-3 का शोध भी उपयोगी होगा।
एक अनुमान के मुताबिक, 2040 तक 634 अरब डॉलर के राजस्व के साथ अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका इस चंद्र अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा शेयरधारक बन जाएगा। सिर्फ सरकारें ही नहीं, स्पेसएक्स और एस्ट्रोबोटिक जैसी निजी कंपनियां भी चंद्रमा की सतह पर माल ले जाने की तैयारी कर रही हैं।
नए मिशन के साथ चुनौतियां वापस आ गई है, लेकिन इस बार तैयारियां पहले से बेहतर हैं। चंद्रयान को सफलतापूर्वक लैंड करने के लिए इसकी वर्तमान गति को 6048 किमी प्रति घंटे से कम करके लगभग 10 किमी प्रति घंटे करना होगा, इससे पहले कि इसे अपना रास्ता सीधा करना होगा ताकि लैंडर ठीक से उतर सके। लैंडर का झुकाव अधिकतम 12 डिग्री होना चाहिए। इसके साथ ही इसका नेविगेशन मार्गदर्शन, उड़ान की गति, स्पष्ट तस्वीरें और सतह भी लैंडिंग के लिए उपयुक्त होनी चाहिए।
चंद्रमा पर उतरने के आखिरी 10 मिनट महत्वपूर्ण
चंद्रमा पर उतरने के आखिरी 10 मिनट सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। साथ ही अभियान में हर चीज का सही ढंग से काम करना जरूरी है। सॉफ्ट लैंडिंग को नियंत्रित किया जाना चाहिए, जिसके लिए उचित समय बहुत महत्वपूर्ण है। जब लैंडर नीचे उतरता है तो वह तेजी से आगे बढ़ सकता है, जिसके लिए नियंत्रण बनाए रखने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण और उसकी सतह पर मौजूद गड्ढे भी मुश्किलें बढ़ाते हैं। धरती से तीन लाख 84 हजार किलोमीटर दूर सही समय पर इनपुट पहुंचाना भी बेहद जरूरी है।