ऑनलाइन दवा की बिक्री को बंद करने के पीछे भारत के ग्रुप पर मिनिस्टर ने दो खास वजह बताई है। पहली वजह, वो ई-फार्मेसी ऐप्स और वेबसाइट हैं, जोकि बगैर डॉक्टर के सलाह के दवाएं बेच रही है। जबकि कानूनी तौर पर बगैर डॉक्टर के सलाह दवाईयां नहीं बेची जा सकती है। वहीं इन दवाओं को मेडिकल लैंग्वेज में शेड्यूल एच, शेड्यूल एक्स और शेड्यूल एच 1 ड्रग के नाम से जाना जाता है।
दूसरी वजह के मुताबिक ई-फार्मेसी ऐप्स चलाने वाली कंपनियां मरीजों के निजी हेल्थ डेटा को संग्रहित करने में लगी है। बता दें कि देश के मरीजों का ये विज्ञापन कंपनियों और विदेशी कंपनियों को बेचने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। इसी के चलते फार्मेसी कंपनी को बंद करने की योजना सरकार ने बनाई है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ई-फार्मा कंपनियों को इसके लिए पहले चेतावनी नहीं भेजी गई।
DGCI ने कंपनियों को पहले ही थमाई नोटिस
यही नहीं, पिछले महीने की 8 तारीख को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने भारत में कारोबार कर रही ई-फार्मा कंपनियों को नोटिस देते हुए जवाब मांगा था कि ई-फार्मा कंपनियां बगैर वैध लाइसेंस की दवा कैसे सेल कर सकती हैं, क्योंकि भारत में कानूनी तौर पर ड्रग्स और कॉस्मेटिक एक्ट 40 रूल्स 1945 के अंतर्गत शेड्यूल एच, शेड्यूल एक्स और शेड्यूल एच 1 ड्रग शेड्यूल की दवाएं बेचने के लिए उसके पास वैध लाइसेंस होना बेहद जरूरी है। आपके पास मौजूद फार्मेसी की दुकानों में ये दवाएं बेचने के लिए इस लाइसेंस की एक नियत फीस देने के बाद कहीं ये मिलता है।
कंपनियों से दो दिन के अंदर जवाब मांगा गया
बता दें कि DGCI की नोटिस जिन फार्मा कंपनियों को पेश किया गया। इस लिस्ट में अमेजॉन, फ्लिपकार्ट, टाटा आईएमजी, नेटमेड्स, फार्मेसी जैसी तमाम कंपनियों के नाम शामिल है। वहीं इस नोटिस के लास्ट पैराग्राफ में स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि कंपनियों को नोटिस मिलने के ठीक 2 दिन के अंदर जवाब पेश करना है। वहीं अगर कंपनियां इसे लेकर जवाब देने देने के लिए आगे नहीं आती तो ये समझ लिया जाएगा कि कंपनियों के पास अपने बचाव को लेकर कहने को कुछ नहीं है। इसके आगे की कड़ी में सरकार उनके खिलाफ आगे का कदम उठाएगी।