जल्लीकट्टू क्या है?
जल्लीकट्टू को इरुत्ज़ुवथुल के नाम से भी जाना जाता है। इसमें बैल को भीड़ के बीच छोड़ दिया जाता है। इस बीच खिलाड़ी सांड को काबू में करने की कोशिश करते हैं। खेल पोंगल त्योहार के हिस्से के रूप में खेला जाता है। उस समय आरोप लगे थे कि इसमें सांडों के खिलाफ हिंसा शामिल है, हालांकि आयोजकों ने ऐसे दावों का खंडन किया। यह खेल सिर्फ सांडों के लिए ही नहीं बल्कि इंसानों के लिए भी बेहद खतरनाक है। इससे मौत का खतरा बना रहता है। यही वजह है कि इस गेम को लेकर कई विवाद भी हैं।
कब शुरू हुई बैन की मांग?
खेल पर प्रतिबंध 2011 में एक केंद्र सरकार के कानून के बाद लागू किया गया था, जिसमें जानवरों की सूची में बैल शामिल थे, जिनकी प्रदर्शनी और प्रशिक्षण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद गेम पर बैन लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया और इस पर रोक लगा दी।
2015 में, तमिलनाडु सरकार ने फैसले को उलटने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। इस बीच तमिलनाडु सरकार ने जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन की बेंच से कहा कि यह सिर्फ मनोरंजन का काम नहीं है, बल्कि इस महान खेल की जड़ें 3500 साल पुरानी धार्मिक परंपरा से जुड़ी हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने केंद्र से अध्यादेश लाने का अनुरोध किया था। 2016 में, केंद्र सरकार कुछ शर्तों के साथ जल्लीकट्टू को अनुमति देने के लिए एक अध्यादेश लाई।