पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन माता सावित्री अपने पति सत्यवान को यमराज से छीनकर वापस ले आई थीं। इस व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। शास्त्रों में वटवृक्ष की पूजा का विधान बताया गया है। वटवृक्ष की पूजा से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। स्थायी धन और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। जीवन में खुशहाली और संपन्नता आती है।
व्रत के लिए शुभ मुहूर्त
व्रत की शुरुआत- 18 मई को शाम 07.37 मिनट पर
व्रत की समाप्ति- 19 मई को शाम 06.17 मिनट पर
वट सावित्री व्रत पूजा अनुष्ठान
बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री सत्यवान और यमराज की मूर्ति स्थापित करें। आप चाहें तो उनकी मानसिक पूजा भी कर सकते हैं। बरगद के पेड़ की जड़ों में जल चढाएं। फूल-धूप और मिष्ठान से पूजा करें। कच्चे रुई की डोरी लें और बरगद के पेड़ की 7 बार परिक्रमा करें। हाथ में भीगे हुए चने लेकर सावित्री सत्यवान की कथा सुनें। फिर भीगे हुए चने, पैसे और कपड़े देकर अपनी सास का आशीर्वाद लें। बरगद के पेड़ की छाल खाकर उपवास खत्म करें।
बरगद के पेड़ की ही पूजा क्यों
यह वृक्ष अत्यंत पवित्र तथा दीर्घजीवी भी होता है। दीर्घायु, शक्ति, धार्मिक महत्व के लिए इस वृक्ष की पूजा की जाती है। पर्यावरण को देखते हुए इस पेड़ को ज्यादा महत्व दिया गया है। कहा जाता है कि बरगद के पेड़ में त्रिदेव का वास होता है। अर्थात् वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा का वास है, तने में विष्णु का वास है और शाखाओं में शिव का वास है।